यूं तो महिलाओं ने मानवीय इतिहास के हर कालखण्ड में जीवन के हर क्षेत्र में अपनी कामयाबियों के झंडे गाड़े हैं, तथा नित नई नई ऊंचाइयों को छुआ है, और यह सिलसिला आज भी जारी है। अगर हम अपने देश की बात करें तो समग्र रूप से देश के विकास में महिलाएं पुरुषों के बराबर ही महत्व रखती हैं। इनके योगदान के बिना जीवन का हर पहलू अधूरा है। बावजूद इसके कि पुरुष प्रधान समाज ने महिलाओं को हादसे में रखते हुए इतिहास में उन्हें उनका वादी भी स्थान नहीं दिया है, फिर भी इन्होंने कला संस्कृति से लेकर युद्ध के मैदान तक महिलाओं की अनगिनत जौहर गाथाएं इतिहास में दर्ज की हैं।
तमाम शहरीकरण के बावजूद आज भी देश की 70 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में निवास करती है,और गांवों की लगभग में 85 प्रतिशत आबादी अपनी आजीविका के लिए सीधे अथवा परोक्ष रूप से कृषि पर ही निर्भर हैं। कृषि में महिलाओं का योगदान लगभग 70 प्रतिशत है। कृषि से संबंधित रोजगारों में भी लगभग 50% महिलाएं कार्यरत हैं। दुग्ध उत्पादन तथा पशुधन व्यवसाय से संबंधित गतिविधियों में लगभग 7.5 करोड़ महिलाएं अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं । एक शोध के अनुसार, पर्वतीय क्षेत्रों में क्षेत्रों के, एक हैक्टर कृषि भूमि पर एक आदमी 1212 घंटे और एक महिला 3485 घंटे काम करती है। यह एक ऐसा आंकड़ा है, जो महिलाओं के कृषि उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान को दर्शाता है।
हमारी भोजन की थाली में महिलाओं का योगदान केवल भोजन पकाने तक ही समझने वालों के लिए यह समझना जरूरी है कि परिवार के लिए भोजन पकाने के अलावा इस भोजन के लिए अनाज फल सब्जी दूध के उत्पादन व प्रसंस्करण में भी महिलाओं का पुरुषों से ज्यादा योगदान है।
अगर हम जनजातीय समुदायों की बात करें तो हम पाएंगे महिलाओं की भूमिका हर लिहाज से पुरुषों से ज्यादा महत्वपूर्ण है। बस्तर की आदिवासी क्षेत्रों में महिलाएं फसल बोने, खेत जोतने, धान की रोपाई करने उसकी निंदाई करने, फसल की कटाई करने, धान को कूटने , भोजन बनाने के लिए जंगल से लकड़ी एकत्र करने, खाने के लिए दोना पत्तल हेतु जंगलों से पत्ते तोड़ने, जंगल से परिवार के भोजन हेतु कंदमूल फल मशरूम भाजी आदि एकत्र करने का कार्य करती हैं। इतना ही नहीं इन आदिवासी समुदायों का मुख्य आर्थिक आधार, आसपास के वनों से विभिन्न वनोपज संग्रहण है। जनजाति समुदाय की महिलाएं जंगलों तेंदूपत्ता, महुआ, चिरौंजी विभिन्न प्रकार की वनौषधियां एकत्र करती हैं तथा उन्हें स्थानीय साप्ताहिक हाट बाजार में बेचकर दैनिक दिनचर्या हेतु बेहद जरुरी चीजें जैसे ही नमक तेल कपड़े तंबाकू आदि की खरीदारी भी करती हैं। साल भर तक चलने वाले जीविकोपार्जन के समस्त कार्यों में लगभग 70 से 90 प्रतिशत भूमिका महिलाओं की होती है।
दूसरी ओर देश में महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, प्रति वर्ष महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के लगभग 3 लाख से ज्यादा मामले दर्ज होते हैं, जिनमें छेड़छाड़, मार-पीट, अपहरण, दहेज उत्पीड़न से लेकर बलात्कार एवं मृत्यु तक के मामले शामिल हैं। देश में धन संपत्ति समृद्धि की देवी लक्ष्मी, प्रज्ञा बुद्धि की देवी सरस्वती तथा शक्ति की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा को माना गया है। गायत्री देवी तथा गायत्री मंत्र को महामंत्र माना जाता है। बसंतोत्सव सरस्वती पूजन का पर्व है। साल भर में देवी के विभिन्न रुपों की आराधना साधना हेतु चार नवरात्रों का प्रावधान है। चैत्र नवरात्रि तथा शरद नवरात्रि में तो नौ नौ दिनों देवी पूजा के महापर्व देश से बनाए जाते हैं। कन्याओं का पूजन कर भोजन करा कर , दक्षिणा देकर उनके चरणो में माथा टेककर परिवार के सदस्यों के सुदीर्घ जीवन , समृद्धि, सुख ,स्वास्थ्य, सुरक्षा, शांति के वरदान हेतु प्रार्थना की जाती है। सदियों से चले आ रहे ऐसे पावन संस्कारों विधि विधानों के बावजूद आज समाज में दुधमुंही बच्चियों के साथ आए दिन जिस तरह की भीभत्स घटनाऐं पेश आ रही हैं, वह पूरे समाज के सामने एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा करती हैं। लिंगभेद,भ्रूण हत्या,, दहेज, घरेलू हिंसा, छेड़छाड़, बलात्कार, सामाजिक अपराधों के दिनों दिन बढ़ती घटनाओं के उपरोक्त आंकड़ों ने पूरे समाज को तथा विशेष रूप से पुरुष वर्ग को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
यह भी मनोवैज्ञानिक शोध का विषय हो सकता है टोनही होने के नाम पर प्रायः महिलाएं ही प्रताड़ित क्यों की जाती हैं? इनकी मूल कारणों के निराकरण हेतु जरूरी सामाजिक शोध तथा समाज में जागरूकता की दिशा में बहुस्तरीय ठोस कार्य किया जाना अभी भी शेष है।
दरअसल हमें समझना होगा कि महिलाएं केवल साल के नौ दिन पूजित होना नहीं चाहती, उन्हें घर और बाहर , परिवार और समाज में उनका वाजिब हक तथा समुचित अधिकार चाहिए। साल में 1 दिन महिला दिवस मनाने से नहीं हो सकता। या 24 घंटे और 365 भी ध्यान रखने का विषय ह
अब हमें समझना ही होगा कि महिलाओं को उनको वाजिब दर्जा देना उन पर कोई एहसान नहीं है बल्कि मानवीय नैतिकता का आज का सबसे जरूरी तकाजा है। इसकी शुरुआत हम अपने देश के पंचायतों, स्थानीय निकायों, विधानसभाओं व तथा दोनों संसद में महिलाओं को उनका वाजिब हक यानी कि 50% आरक्षण देकर कर सकते हैं। अब समय आ गया है कि,अपने आप को सभ्य व विकसित सभ्यता होने का दावा करने वाले समाज द्वारा मानवता द्वारा महिलाओं के प्रति किए गए सतत पक्षपात , अन्याय तथा अपराधों का प्रायश्चित करने की शुरुआत की जाय तथा आधी आबादी को उनके अधिकारों की बहाली के साथ समुचित मुआवजा भी अदा किया जाए।
डॉ राजाराम राष्ट्रीय संयोजक, अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) www.farmersfederation.com