माना जाता है कि विश्व में जैव विविधता का सबसे बड़ा खजाना अमेजन घाटी के बाद छत्तीसगढ़ बस्तर की कांगेर घाटी के वन हैं। जी हां देश विदेश में 5000 वर्षों से भी पुराने बायसन हार्न माड़िया प्रजाति की आदिम जनजातियों के आज भी अपनी परंपराओं को जस का तस समेटे बचे खुचे वंशज ज तथा कभी अपने बेहद सघन जंगलों के लिए जाने जाने वाले आदिवासी क्षेत्र बस्तर के कोंडागांव जिले के आसपास दिनों दिन तेजी से कट रहे पेड़ और छीजते जंगल तथा चारों ओर शनै शनै पसर रहे कंक्रीट के जंगल की एक जमीनी रिपोर्ट संलग्न वीडियो के साथ पेश कर रहे हैं, बस्तर में ही पैदा हुए आगे बढ़े चिंतक लेखक डॉ राजाराम त्रिपाठी।
डॉक्टर त्रिपाठी कहते हैं कि यह कैसी विडंबना है कि जहां एक ओर कोंडागांव को दिल्ली में देश के सबसे तेजी से आगे बढ़ते आकांक्षी जिले के रूप में पुरस्कृत किया जाता है, वहीं दूसरी ओर इस शहर से सटे हुए जंगल, राजमार्गों के दोनों ओर लगे हुए सैकड़ों साल पुराने पेड़ तथा जिले की गांव के आसपास बचे शेष जंगल भी तेजी से सिकुड़ते जा रहे हैं। लाखों सालों में तैयार हुए जैव विविधता की अपार संपदा अपने में समेटे हुए यह जंगल जिस तेजी से मनुष्य की नासमझी और लालच की भेंट चढ रहे हैं यह बेहद आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहद दुखद व अपूरणीय नुकसान होगा। कम से कम कोरोना महामारी से मिले कड़वे सबक के बाद तो हमें प्राणवायु ऑक्सीजन की नैसर्गिक फैक्ट्री हमारे मित्र इन पेड़ों और जंगलों को बचाने के बारे में गंभीरता से सोचना ही होगा। राजनीतिक पार्टी भले कोई भी हो सभी को इमानदारी से यह आत्मचिंतन करना चाहिए कि वोट बटोर कर सत्ता की कुर्सी हथियाने के लालच में वन भूमि पट्टा का लालच देकर जंगल के सनातन पहरुए आदिवासी समुदाय को ही हमारे मानवीय सभ्यता के सबसे ज्यादा अनमोल खजाने, हमारे प्राकृतिक जंगलों के खिलाफ कुल्हाड़ी लेकर खड़े करने का कुत्सित षड्यंत्र पूरे मानव समाज को बहुत महंगा पड़ने वाला है, यह अवश्य ख्याल रखिएगा। और हां आप यह भी मत भूलिए कि नैसर्गिक जंगलों को कटवा कर अपने भ्रष्ट कमीशनखोर सरकारी विभागों के द्वारा वृक्षारोपण की खानापूर्ति के द्वारा हम कभी भी अपने खोए हुए जैव विविधता से भरपूर नैसर्गिक जंगलों की भरपाई नहीं कर पाएंगे। उम्मीद है जिला, प्रदेश तथा केंद्र शासन प्रशासन एवं जनप्रतिनिधि, साहित्यकार एवं मीडिया के जागरूक साथी इस दिशा में जरूरी इमानदारी व गंभीरता से विचार करेंगे और कुछ ठोस कदम उठाएंगे।
आमीन
डॉ राजाराम त्रिपाठी
आदिवासी शोध एवं विकास संस्थान,
कोंडागांव बस्तर छत्तीसगढ़।
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