तालिबान के भारतीय समर्थकों की दशा : “बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना”

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बहुत से भारतीय अफगानिस्तान पर तालिबान की सत्ता का स्वागत कर रहे हैं, और तालिबान को आजादी की बधाइयां दे रहे हैं, अपनी बातों के समर्थन में वो तालिबान की लड़ाई को भारत की आजादी की लड़ाई से जोड़कर बता रहे हैं, उनके अनुसार तालिबानी भी उतने ही पवित्र हैं जितने की भारत की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले क्रांतिकारी, उनका मानना ये है कि अफगानी भी तालिबान को ही दिलोजान से चाहते हैं और ये चाहत इतनी ज्यादा है कि अगर एक दिन के लिए भी वे तालिबान से जुदा हो जाएं तो शायद जीवित ही ना रह पाएं,पर मेरी समझ में ये नहीं आता कि अगर अफगानिस्तान में तालिबान की स्वीकार्यता इस हद तक है तो फिर अब तो वैसे भी अमेरिका वहां से लगभग अपना बोरिया बिस्तर समेट चुका था, और अमेरिका के जाने के बाद तालिबान को भी वहां छुपकर रहने की जरूरत नहीं थी बल्कि वह वहां की मुख्यधारा में शामिल होकर रह सकता था और अफगानिस्तान में अंतिम चुनाव 2019 में हुए थे इसका ये मतलब हुआ कि आने वाले 2-3 सालों में फिर से अफगानिस्तान में चुनाव होने ही थे,

तो अगर तालिबान को ये लगता था कि अफगानी उनकी सत्ता में ही जीना चाहते हैं तो वो इन 2-3 वर्षों तक अपना चुनावी प्रचार प्रसार कर आगामी चुनावों में भाग लेकर और जीत हासिल करके राजनीतिक रूप से अफगानिस्तान की सत्ता ले सकते थे, और अगर वे इस तरह से सत्ता अपने हाथ में लेते तो निश्चित तौर पर सारी दुनिया में कोई भी उनके ऊपर उंगली नहीं उठा पाता क्योंकि वहां की सत्ता पर वो अपने देश की जनता की बदौलत विराजमान होते,पर बंदूक के दम पर अगर किसी भी देश में सत्ता स्थापित की जाती है तो उसकी विश्वसनीयता पर सवाल और संशय उठना तो लाजिमी है, बहुत से लोग तो तालिबान की सत्ता को भारत की लोकतांत्रिक सत्ता से भी बेहतर बता रहे हैं वो अलग की बात है, कि अपने देश में वो लोकतांत्रिक और सेक्युलर सत्ता चाहते हैं,वे शायद भूल जाते हैं कि हम अगर भारत की सड़कों पर निकलते हैं तो ज्यादा से ज्यादा हमें किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है,हो सकता है कि किसी नेता का काफिला गुजर रहा हो तो हमारी वाहन रुकवा दी जाती है या फिर कहीं ट्रेफिक पुलिस चालानी कार्यवाही कर रही हो और वाहन के दस्तावेज पूरे ना हों तो वैध तरीके से चालान की राशि जमा की जा सकती है या फिर अवैध तरीके से कुछ राशि ट्रेफिक पुलिस की जेब में डालकर भी वहां से निकला जा सकता है, अगर पुलिस गलत कर रही हो तो वहाँ पर पुलिस से बहस भी की जा सकती है, और बहस करते वक़्त भी आप इस बात को लेकर निश्चिंत रह सकते हैं कि इनके पास में जो हथियार है उसमें से अगर बहुत अधिक हुआ तो ये सिर्फ अपने डंडे का प्रयोग आप पर कर सकते हैं

फ़ोटो-सोशल मीडिया से प्राप्त

और उसके बाद अगर आपने थोड़ा सा और लिखने पढ़ने की जहमत उठा ली तो उसके लिए भी इनको कई जगहों पर स्पष्टीकरण तो देना पड़ ही जायेगा, उसके अलावा ये अपने किसी भी हथियार का उपयोग आपपर नहीं कर सकते हालांकि अपवादों के रूप में 10-20 साल में एकाद घटना सामने आ जाती है लेकिन उन अपवाद स्वरूप घटनाओं को लेकर हम अपने लोकतंत्र से ज्यादा बेहतर तालिबानी शासन प्रणाली को नहीं बता सकते,लेकिन यही आप जरा तालिबान के आतंकवादियों को ट्रैफिक पुलिस की भूमिका में रखकर देख लीजिए उनको ना तो कोई ट्रेनिंग मिली हुई है और ना ही उनके अंदर अपनी जान देने या किसी की जान लेने का कोई खौफ है, उनके लिए तो हथियार खिलौनों की तरह हैं जिसका उपयोग वो काफी कम उम्र से करते आये हैं, इसलिए वो इनका प्रयोग गाइडलाइंस के अनुसार नहीं बल्कि अपने मूड के अनुसार किसी भी वक़्त किसी भी समय कर सकते हैं, हालांकि मुझे भी पता है कि लोकतंत्र में बहुत सारी कमियां और बुराइयां होती हैं लेकिन उसके साथ साथ मुझे ये भी पता है कि लोकतंत्र के अलावा बाकी अन्य शासन प्रणालियां तो बहुत ही ज्यादा बुरी और वीभत्स होती हैं, और सड़क पर चलते वक़्त ट्रैफिक पुलिस की भूमिका के रूप में तालिबानी ट्रैफिक पुलिस और लोकतांत्रिक ट्रैफिक पुलिस का मैंने सिर्फ एक उदाहरण दिया है क्योंकि ये बहुत आम है और इससे सामना हर नागरिक को करना पड़ता है, इसी प्रकार आप सभी कार्यों के लिए एक लोकतांत्रिक सत्ता और बंदूक के दम पर पाई गई सत्ता के बीच में तुलना कर सकते हैं,लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबी ये होती है कि अगर आपको आपकी सरकार पसंद नहीं है और अगर आपके साथ साथ एक बड़ा तबका भी उस सरकार को पसंद नहीं कर रहा है तो आप चुनावों में सरकार को सबक सिखाते हुए अपने वोटों के द्वारा उस सरकार को बदल सकते हैं, पर बंदूक के दम पर जो सरकार चल रही हो अगर उसे आप बदलना चाहे तो खून की नदियां जरूर बह जाएंगी लेकिन उसके बाद भी उस सरकार के बदलने की संभावना काफी कम होती है, इसलिए मेरे अनुसार तो तालिबान की सत्ता को लोकतांत्रिक सरकार से बेहतर बताना कहीं से भी उचित नहीं है, बाकी फिर भी जो भारतीय तालिबान का समर्थन करना चाह रहे हैं वो क्योंकि एक लोकतांत्रिक देश में रहते हैं इसलिए अपनी समझ और अपने रिस्क के आधार पर तालिबान का समर्थन कर सकते हैं..!!

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