हमारे लिये बेहतर कौन लोकतांत्रिक सरकार या तालिबान?

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विवेक त्रिपाठी, (स्वतंत्रत पत्रकार)

अफगानिस्तान को कैंसर की तरह पूरी तरह से अपनी जकड़ में लेने में तालिबान कामयाब होता दिख रहा है, बहुत से अफगानी ऐसे हैं जो तालिबान की सत्ता की जगह एक लोकतांत्रिक सत्ता चाह रहे हैं जो बंदूक के सहारे नहीं बल्कि जनता द्वारा चुनी गई हो,जिससे कि वो अपना जीवन संवैधानिक तरीके से जी सकें,पर इस बात की संभावना वर्तमान परिस्थितियों में लगभग नामुमकिन सी जान पड़ रही है, बहरहाल वहां पर जो भी हो रहा हो लेकिन चूंकि आज का वक़्त सोशल मीडिया का है इसलिए इस पर सोशल मीडिया पर भी लगातार खबरें चल रही हैं और पूरी दुनिया के लोग विशेषकर भारत पाकिस्तान के लोग इन खबरों पर होने वाली बहस में बढ़ चढ़कर भाग भी ले रहे हैं और भारत पाकिस्तान के लोगों को भाग लेना भी चाहिए क्योंकि कहीं ना कहीं दोनों को ही अफगानिस्तान से किसी ना किसी रूप में जुड़े हुए हैं ,

“फोटो सोशल मीडिया से ली गई है “

जैसे पाकिस्तान की बात की जाए तो यह बात सारी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान में आतंकवाद की खेती भी होती है और आतंकवाद की फैक्ट्री भी लगाई जाती है, इसलिए अगर तालिबान जैसे आतंकवादी संगठन के कब्जे में अफगानिस्तान आता है तो निश्चित तौर पर पाकिस्तान को इससे फायदा पहुंचना ही है,क्योंकि पाकिस्तान तालिबान का समर्थन जगजाहिर तौर पर करता रहा है, वहीं भारत के नजरिए से देखा जाए तो अभी तक एक अच्छा खासा निवेश भारत अफगानिस्तान में कर चुका है और साथ ही साथ अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार के साथ भारत के मित्रतापूर्ण संबंध भी हैं, इसलिए भारत के लिए तो यह अच्छा है कि वहां पर लोकतांत्रिक सत्ता ही बनी रहे,लेकिन बड़े अफसोस की बात है भारत में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो दिल खोलकर अफगानिस्तान पर तालिबान की सत्ता का समर्थन कर रहा है और तालिबान की जीत पर जश्न मना रहा है, जबकि आतंकवाद ने अभी तक भारत को कितने जख्म दिए हैं यह बात हम सभी भारतवासी अच्छी तरह से जानते हैं, यह जश्न ठीक उसी प्रकार का है जब भारत के और एक वर्ग ने पाकिस्तान में हुई भीषण विमान दुर्घटना में मारे गए आम नागरिकों की मौत पर जश्न मनाया था,इन दोनों घटनाओं में जश्न मनाने वाले वर्ग अलग अलग थे लेकिन ये दोनों ही जश्न भारत की महानता पर दाग लगाते हैं,एक देश के रूप में हमें हमारे देश का हित चाहनेवाले देशों या संगठनों का ही समर्थन करना चाहिए अब चाहे वो देश या संगठन कोई भी हों,लेकिन ऐसे देशों या संगठनों की तरफदारी हमें कभी नहीं करनी चाहिए जो आगे चलकर हमारे देश के लिए भी खतरा बन सकते हों,हालांकि ये बात बिल्कुल सही है कि कन्धार विमान अपहरण कांड के वक़्त जब वहां पर तालिबान ही था उस वक़्त अगर तालिबान ने भारत का साथ दिया होता और उन तीनों खूंखार आतंकवादियों जिन्हें ना जाने कितनी विपरीत परिस्थितियों में और अपनी जान की बाजी लगाकर हमारे वीर जवानों ने पकड़ा होगा,और जिन्होंने रिहा होने के बाद भारत को जख्म पर जख्म दिए,

“फोटो सोशल मीडिया से ली गई है “

उनको बिना रिहा करवाये अगर तालिबान ने विमान और यात्रियों को सकुशल वापस भारत भिजवा दिया होता तो शायद मेरा भी आज का यह लेख तालिबान के समर्थन में होता लेकिन तालिबान उस पूरे घटनाक्रम में डबल गेम खेलता रहा एक तरफ तो वो अपहरणकर्ताओं को यह कहता रहा कि अगर तुमने यात्रियों को नुकसान पहुंचाया तो हम तुम पर हमला कर देंगे वहीं दूसरी तरफ उसने अपहरणकर्ताओं को कन्धार में पनाह देकर भारत सरकार से सौदा करने का पूरा अवसर भी उपलब्ध करवाया, जाहिर सी बात है उस वक़्त पूरी दुनिया में आतंकवादियों के लिए सबसे सुरक्षित जगह कोई थी तो तालिबान प्रशासित अफगानिस्तान ही था, हालांकि भविष्य में तालिबान का रवैया भारत के प्रति क्या रहने वाला है ये तो भविष्य के गर्भ में ही है, लेकिन इतना तो तय है कि तालिबान भारत के मधुर संबंध तो कभी नहीं बन सकते क्योंकि तालिबान का सबसे बड़ा करीबी पाकिस्तान है इसलिए वो कभी नहीं चाहेगा कि भारत और तालिबान में मित्रता हो,और दूसरी बात ये है कि भारत की प्रवृत्ति कभी भी आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली या आतंकवादी संगठनों से मित्रता करने वाली नहीं रही है, इसलिए भारत के लिए ज्यादा अच्छा तो यही ही रहेगा कि अफगानिस्तान में एक चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार ही रहे..!!

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